Skip to main content
डाक्टर साहब ने छोटी अवस्था से लेकर अंत तक कोई भी कार्य अपने लिए नहीं किया। उन्होंने अपना पेट भरने तक की चिंता नहीं की। समाज के लिए जीने की भावना और निरंतर कार्य करने की लगन, बस यही था उनका संपूर्ण जीवन। जो कुछ पढ़ा-लिखा वह भी इसी दृष्टि से, कि लोगों के दिलों में सद्भाव ही उत्पन्न हो। उन्होंने इसी कारण डाक्टरी की उपाधि प्राप्त की थी, किंतु डाक्टरी एक दिन भी नहीं की। इसी प्रकार जब चाचाजी ने उनको विवाह करने के लिए उद्यत करने की चेष्टा की, तब उन्होंने एक पत्र में स्पष्ट लिखा- 'मेरे जीवन का एक ही ध्येय है और मैंने अपने जीवन को उस ध्येय के साथ एकरूप कर दिया है। अतएव वैयक्तिक सुखोपभोग और पारिवारिक जीवन के लिए अवकाश कहाँ है?' हृदय के सारे गुण कार्य को दे दिए थे। फिर स्वयं के पास बचा ही क्या था, जिससे पारिवारिक जीवन चला सकें। यद्यपि उन्होंने अति दरिद्र कुटुंब, जिसमें प्रातःकाल का भोजन होने के पश्चात् सायं के भोजन की चिंता सताया करती है, में जन्म लिया था। फिर भी व्यक्तिगत कार्य के लिए एक पैसा कमाने तक की चेष्टा उन्होंने नहीं की और न ही पारिवारिक जीवन का सुख भोगने की लालसा को हृदय में प्रविष्ट होने दिया।
Popular posts from this blog
Comments
Post a Comment